अब कोई नहीं रोक सकता! पोते का हक़ तय हुआ दादा की जमीन पर Ancestral Property Rights

Published On: August 4, 2025
अब कोई नहीं रोक सकता! पोते का हक़ तय हुआ दादा की जमीन पर Ancestral Property Rights

Ancestral Property Rights भारतीय समाज में संयुक्त परिवार और पुश्तैनी संपत्ति की परंपरा पुरानी है, लेकिन जब इस संपत्ति के अधिकारों की बात आती है, तो सबसे ज्यादा भ्रम इस बात को लेकर होता है कि पोते का दादा की संपत्ति पर क्या हक़ है। इसी विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा फैसला सुनाया, जिसने कानूनी स्थिति को और स्पष्ट कर दिया है। यह लेख इस बात की विस्तार से जानकारी देगा कि वंशानुगत और स्वअर्जित संपत्ति में पोते का क्या स्थान है, और कैसे वह अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है।

वंशानुगत और स्वअर्जित संपत्ति में अंतर

संपत्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है – वंशानुगत (पुश्तैनी) और स्वअर्जित। वंशानुगत संपत्ति वह होती है जो चार पीढ़ियों तक बिना विभाजन के पारिवारिक तौर पर चली आ रही हो। यह संपत्ति पिता, दादा, परदादा और उनके पूर्वजों से चली आई हो और सभी सहदायिकों के बीच समान रूप से बंटी हो। इसके विपरीत, स्वअर्जित संपत्ति वह होती है जो किसी व्यक्ति ने स्वयं की मेहनत, आय या निवेश के माध्यम से अर्जित की हो। इन दोनों प्रकार की संपत्तियों पर अधिकार और उनका वितरण अलग-अलग कानूनी नियमों के अंतर्गत होता है।

पुश्तैनी संपत्ति में पोते का जन्मसिद्ध अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत, यदि कोई संपत्ति पुश्तैनी है तो पोते को उसमें जन्म से ही अधिकार प्राप्त होता है। इसका मतलब यह है कि जैसे ही पोता जन्म लेता है, उसे उस संपत्ति में एक सहदायिक के रूप में मान लिया जाता है। इस अधिकार के लिए उसे किसी वसीयत, दानपत्र या रजिस्ट्री की जरूरत नहीं होती। उदाहरण के लिए, अगर दादा के पास वंशानुगत संपत्ति है और उनके तीन बेटे हैं, तो प्रत्येक बेटे को और उनके बच्चों को भी संपत्ति में समान हिस्सा मिलता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी हालिया फैसले में इस सिद्धांत की पुष्टि की है।

स्वअर्जित संपत्ति में पोते की कोई गारंटी नहीं

यदि दादा ने जो संपत्ति अर्जित की है वह उनकी मेहनत या आय से है, तो उस पर उनका व्यक्तिगत अधिकार होता है। ऐसी स्थिति में पोते को उस संपत्ति में कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता। दादा यदि चाहें तो वह संपत्ति किसी को भी दे सकते हैं या वसीयत के ज़रिए किसी एक को नामित कर सकते हैं। स्वअर्जित संपत्ति को लेकर कई बार विवाद तब उत्पन्न होता है जब परिवार के सदस्य इसे पुश्तैनी मान बैठते हैं। लेकिन कानून इस पर स्पष्ट है – स्वअर्जित संपत्ति पर पोते का हक़ तभी बनता है जब उसे वसीयत या दान के माध्यम से नामित किया गया हो।

दादा पुश्तैनी संपत्ति को बेच नहीं सकते

अगर कोई संपत्ति पुश्तैनी है, तो दादा उसे अपनी मर्जी से बेच नहीं सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वंशानुगत संपत्ति सभी सहदायिकों की होती है और उसमें किसी एक का पूर्ण स्वामित्व नहीं होता। दादा यदि परिवार की सहमति के बिना संपत्ति का सौदा करते हैं, तो पोता न्यायालय में जाकर उस विक्रय को चुनौती दे सकता है। हालांकि दादा अपने हिस्से का निपटान कर सकते हैं, लेकिन पूरी संपत्ति पर वे स्वामित्व नहीं जता सकते। यह प्रावधान संपत्ति की रक्षा करता है और अन्य सहदायिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखता है।

वसीयत का प्रभाव सिर्फ स्वअर्जित हिस्से पर

कई बार लोग यह समझ लेते हैं कि दादा की वसीयत पूरे घर या सारी जमीन पर लागू होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। वसीयत का प्रभाव सिर्फ उस हिस्से पर होता है जिस पर व्यक्ति का वैयक्तिक अधिकार हो। पुश्तैनी संपत्ति में वसीयत का असर केवल दादा के हिस्से तक सीमित रहता है। वह किसी भी अन्य सहदायिक के हिस्से को अपनी वसीयत में शामिल नहीं कर सकते। इसके उलट, स्वअर्जित संपत्ति पर वह पूरी तरह अधिकार रखते हैं और उसे अपनी इच्छानुसार वितरित कर सकते हैं।

पोते अपने अधिकारों की रक्षा कैसे करें?

अगर किसी पोते को लगता है कि उसे उसकी जायज संपत्ति से वंचित किया जा रहा है, तो वह कोर्ट में विभाजन वाद या उत्तराधिकार वाद दायर कर सकता है। इसके लिए उसे कुछ मुख्य दस्तावेजों की आवश्यकता होती है – जैसे कि संपत्ति के रजिस्ट्री कागजात, खसरा-खतौनी, पारिवारिक वंशावली, और जमीन के राजस्व अभिलेख। यदि विवाद पुश्तैनी संपत्ति को लेकर है तो कानून पूरी तरह पोते के पक्ष में खड़ा रहता है, बशर्ते वह संपत्ति की प्रकृति और अपने अधिकारों को सही तरीके से प्रमाणित कर सके।

संपत्ति विवाद से बचाव के उपाय

पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद से बचने का सबसे अच्छा उपाय है पारदर्शिता और दस्तावेजी स्पष्टता। परिवार को मिल बैठकर निर्णय लेने चाहिए और हर सदस्य को संपत्ति की प्रकृति के बारे में जानकारी होनी चाहिए। यदि संपत्ति स्वअर्जित है तो उसकी वसीयत समय रहते बना लेनी चाहिए और सभी दस्तावेज कानूनी रूप से सुरक्षित रखने चाहिए। कानूनी सलाह लेना और समय-समय पर संपत्ति की समीक्षा करना एक बुद्धिमान कदम हो सकता है।

निष्कर्ष: अधिकारों की सही समझ ही समाधान

दादा की संपत्ति में पोते का अधिकार इस बात पर निर्भर करता है कि वह संपत्ति वंशानुगत है या स्वअर्जित। कानून दोनों के लिए अलग-अलग नियम निर्धारित करता है और सुप्रीम कोर्ट ने हालिया फैसलों से इस दिशा में और स्पष्टता प्रदान की है। अपनी संपत्ति की प्रकृति को समझना और कानूनी रूप से जागरूक रहना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। इससे न केवल संपत्ति सुरक्षित रहती है बल्कि पारिवारिक संबंध भी मधुर बने रहते हैं।

अस्वीकरण

यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी इंटरनेट स्रोतों पर आधारित है। किसी भी संपत्ति विवाद या कानूनी प्रक्रिया में जाने से पहले योग्य वकील से परामर्श अवश्य लें और सभी दस्तावेजों की उचित जांच करें।

FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

प्रश्न 1: क्या पोते को दादा की संपत्ति में जन्म से अधिकार मिलता है?
उत्तर: यदि संपत्ति वंशानुगत है तो हां, पोते को जन्म से ही उसमें अधिकार प्राप्त होता है।

प्रश्न 2: स्वअर्जित संपत्ति में पोते का क्या हक़ होता है?
उत्तर: स्वअर्जित संपत्ति में पोते का कोई अधिकार नहीं होता जब तक कि मालिक उसे नामित न करे।

प्रश्न 3: क्या दादा बिना अनुमति के पुश्तैनी जमीन बेच सकते हैं?
उत्तर: नहीं, दादा केवल अपने हिस्से को बेच सकते हैं, पूरी संपत्ति को नहीं।

प्रश्न 4: वसीयत किस संपत्ति पर लागू होती है?
उत्तर: वसीयत का प्रभाव केवल स्वअर्जित संपत्ति या वंशानुगत संपत्ति में व्यक्ति के हिस्से तक ही सीमित होता है।

प्रश्न 5: अगर संपत्ति विवाद हो तो पोता क्या कर सकता है?
उत्तर: पोता कोर्ट में जाकर विभाजन या उत्तराधिकार वाद दायर कर सकता है और अपने हक़ की मांग कर सकता है।

Kumari Pooja

Kumari Pooja is a professional content writer with over 4 years of experience in delivering accurate and engaging news. She specializes in auto industry updates, Sarkari Yojana news, employee news, and government update. Her writing aims to simplify complex topics, making important information accessible to the common reader across digital platforms.

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